Saturday Dec 08, 2018

श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय १८ श्लोक १०,११ आणि १२ - स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती यांच्या विवरणा सहित

न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते। त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।।18.10।।

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः। यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।।18.11।।

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्। भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित्।।18.12।।

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